इंदौर में घना जंगल कहीं नहीं, 0.27% घटा, जबकि प्रदेश में बढ़ गया वन क्षेत्र

इंदौर. प्रदेश में हरियाली काे लेकर जंगलाें से एक सुखद खबर है। खबर यह कि प्रदेश में वन क्षेत्र बढ़ गया है, लेकिन इंदौर के लिए चिंता की बात कि यहां जंगल 0.27 फीसदी घट गया है। प्रतिशत में ही बात की जाए तो इंदौर में घना जंगल शून्य पर है। ये तथ्य भारतीय वन सर्वेक्षण ने 2019 की रिपोर्ट में सामने अाए हैं। इंंदौर सर्कल की बात की जाए तो चोरल, मानपुर, नाहर झाबुआ तरफ जो जंगल मध्यम श्रेणी का है।


धार, झाबुआ और आलीराजपुर में शून्य फीसदी घना जंगल है। भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग हर दाे साल में जंगलों का आकलन करता है। सैटेेलाइट इमेज किए गए अाकलन में सामने अाया कि इंदौर वृत्त में मध्यम स्तर का जंगल भी घट गया है। वन भूमि के नाम पर खुले मैदान रह गए हैं। इन मैदानों में हर साल पौधारोपण के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन घास के सिवा के कुछ नहीं उग रहा। इसके विपरीत प्रदेश में 68 वर्ग किमी जंगल बढ़ा है। 2017 में प्रदेश में वन क्षेत्र 77414 वर्ग किमी था, जो 2019 में 77482 वर्ग किमी हो गया। प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का 25.14 फीसदी वन क्षेत्र है। 
इंदौर वन मंडल में ऐसी है जंगल की स्थिति 
- 3898 वर्ग किमी है कुल जंगल (इंदौर, धार, झाबुआ, आलीराजपुर मिलाकर) 0% है घना जंगल 
- 349.08 वर्ग किमी है मध्य श्रेणी का जंगल  
- 329.65 वर्ग किमी है खुला जंगल  
पौधे लगाने में गड़बड़ी, इसलिए ऐसे हालात
प्रधान मुख्य वन संरक्षक यू. प्रकाशम पिछले दिनों महू रेंज में पौधारोपण देखने गए थे। वहां के कई कक्षों में उन्होंने पौधारोपण को दोयम दर्ज का बताया। उन्होंने यहां तक कहा था कि इतना खराब पौधारोपण मैंने कभी नहीं देखा। यही हाल इंदौर रेंज में भी है। यहां भी कागजी पौधारोपण हुआ। वहीं, इंदौर वन मंडल सहित धार, झाबुआ, आलीराजपुर वन मंडल में 2017 और 2018 में लापरवाही भी उजागर हुई थी। चोरल में दो हजार से ज्यादा पेड़ों की कटाई, अफसरों का कागजी दौरा दिखाया। तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक, वन संरक्षक के खिलाफ भी लापरवाही बरतने के मामले सामने आए थे। 
बसाहट के बीच आ रहे हैं जंगली जानवर
इंदौर में जंगल खत्म होने का एक प्रमाण यह भी है कि शिकार की तलाश में तेंदुए बसाहट के बीच लगातार आ रहे हैं। वन विभाग का रेसक्यू अमला आए दिन घायल या बीमार स्थिति में मिल रहे जानवरों को पकड़ने जा रहा है। पिछले तीन साल में ही तेंदुए के एक दर्जन से ज्यादा मामले सामने आए हैं।
12 बजे की धूप जमीन पर नहीं दिखे तो समझो घना जंगल : जमीनी रूप से भी जंगल का आकलन किया जाता है। जंगल में खड़े होकर दोपहर 12 बजे की धूप जमीन पर नहीं दिख रही हो तो उसे ही घना जंगल माना जाता है। जंगल के आकलन का यह सबसे सटीक तरीका माना जाता है।